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Hindi Kavita : तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास !

आपकी कलम Published by: Paliwalwani Updated Fri, 13 Jan 2023 07:01 AM
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!! धर्मवीर भारती !!

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास ! 

ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में, सूने खंडहर के आस-पास 

मदभरी चाँदनी जगती हो! 

मुँह पर ढक लेती हो आँचल, 

ज्यों डूब रहे रवि पर बादल। 

या दिन भर उड़ कर थकी किरन, 

सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन; 

दो भूले-भटके सांध्य विहग 

पुतली में कर लेते निवास। 

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास! 

 खारे आँसू से धुले गाल, 

रूखे हल्के अधखुले बाल, 

बालों में अजब सुनहरापन, 

झरती ज्यों रेशम की किरने संझा की बदरी से छन-छन, 

मिसरी के होंठों पर सूखी, 

किन अरमानों की विकल प्यास! 

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास! 

भँवरों की पाँते उतर-उतर 

कानों में झुक कर गुन-गुन कर, 

हैं पूछ रही क्या बात सखी? 

उन्मन पलकों की कोरों में क्यों दबी-ढुकी बरसात सखी? 

चंपई वक्ष को छू कर क्यों 

उड़ जाती केसर की उसाँस! 

तुम कितनी सुंदर लगती हो, जब तुम हो जाती हो उदास! 

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