मृत्यु जीवन का अंतिम और अटल सत्य है जिसे कोई टाल नहीं सकता है. गरुड़ पुराण के अनुसार, जिसने भी इस संसार में जन्म लिया है, उसकी मृत्यु होना निश्चित है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है जिससे जुड़ें कई नियम हैं. उन्हीं में से एक है बेटे द्वारा मुखाग्नि देना.
हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार, घर के किसी भी सदस्य की मृत्यु पर उन्हें सिर्फ बेटा या घर का लड़का ही मुखाग्नि दे सकता है. लड़कियों को अंतिम संस्कार करने की मनाही होती है लेकिन इसके पीछे भी धार्मिक मान्यता जुड़ी हुई है.
TV 9 डिजिटल ज्योतिषाचार्य अरुणेश कुमार से इस संबंध में बात की तो उन्होंने बताया कि हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार वंश परांपरा का हिस्सा एक हिस्सा है और चूंकि पुत्री विवाह के बाद दूसरे परिवार का हिस्सा हो जाती हैं इसलिए उनके द्वारा मृतक को मुखाग्नि नहीं दी जाती है. हालांकि, अगर परिवार में कोई पुत्र या बड़ा न हो तो इसी स्थिति में लड़कियां भी अंतिम संस्कार की प्रक्रिया निभाती हैं.
आगे उन्होंने कहा कि मृत्यु के बाद परिवार के सदस्य पितृ बन जाते हैं और किसी भी सदस्य के अंतिम संस्कार में वंश की भागीदारी होनी अनिवार्य होता है इसलिए पुत्र द्वारा मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया जाता है.
शास्त्रों द्वारा बताया गया है कि पुत्र शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है. ‘पु’ यानी नरक और ‘त्र’ यानी की त्राण. इस हिसाब से पुत्र का अर्थ हुआ नकर से तारने वाले यानी कि नरक से निकाल कर, पिता या मृतक को उच्च स्थान पर पहुंचाने वाला. इसी वजह से ही पुत्र को अंतिम संस्कार की सभी प्रक्रिया को करने का प्रथम अधिकार दिया गया है.
वहीं, इसके पीछे दूसरा कारण यह भी है कि जिस प्रकार लड़की लक्ष्मी स्वरूपा होती है वैसे ही पुत्र को विष्णु तत्व माना जाता है. विष्णु तत्व से यहां अर्थ है पालन पोषण करने वाला, यानी घर का वो सदस्य जो पूरे घर को संभालता है और घर के सदस्यों का भरण पोषण करता है. हालांकि अब इस जिम्मेदारी को लड़कियां भी उठाने में पूरी तरह सक्षम हैं. आज के दौर में लड़कियां भी अंतिम संस्कार करती हैं और किसी बड़े की मृत्यु के बाद पूरे घर की जिम्मेदारी को पूरा करती हैं.