हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि पड़ती है. इस तरह से पूरे साल में कुल 24 और अधिकमास वाले साल में 26 एकादशी तिथि पड़ती है. सभी एकादशी तिथि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसी तरह भाद्रपद या भादो माह में पड़ने वाली एकादशी को जलझूलनी एकादशी (Jal Jhulni Ekadashi) कहा जाता है. इसे परिवर्तनी एकादशी, पदमा एकादशी और डोल ग्यारस भी कहते हैं.
जलझूलनी एकादशी का व्रत व पूजन मंगलवार 6 सितंबर 2022 को किया जाएगा. एकादशी का व्रत और पूजन भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है. लेकिन कुछ स्थानों पर इस दिन को भगवान कृष्ण की सूरज पूजा यानी जन्म के बाद होने वाले मांगलिक कार्यक्रम के रूप में भी मनाया जाता है. जलझूलनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है.
जलझूलनी एकादशी पर पूजा और व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. साथ ही इस दिन कुछ विशेष उपायों को करने से घर पर सुख-समृद्धि का वास होता है और व्यक्ति को सभी परेशानियों से मुक्ति मिलती है. दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं जलझूलनी एकादशी के महत्व और इससे जुड़े उपायों के बारे में.
शास्त्रों में बताया गया है कि जलझूलनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जोकि चातुर्मास के कारण योग निद्रा में होते हैं, वे विश्राम के दौरान करवट लेते हैं. स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में एकादशी महात्म्य नाम के अध्याय में भी इस एकादशी के महत्व का वर्णन किया गया है.
कहा जाता है कि इस एकादशी के व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है. शास्त्रों के अनुसार जिस व्यक्ति ने भाद्रपद शुक्ल एकादशी का पूजन कर लिया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया.