पेरिस ओलंपिक में जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय हॉकी टीम के धाकड़ गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने अंतिम मिनटों में गोल खाली कर दिया। ये एक रिस्की फैसला था, लेकिन पीआर श्रीजेश ने ऐसा क्यों किया? बता दें कि सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय टीम ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन पेनल्टी कॉर्नर को न भुना पाने में टीम की नाकामयाबी हार की एक बड़ी वजह बनी और ओलंपिक फाइनल खेलने का 44 साल पुराना इंतजार 4 साल के लिए और बढ़ गया। भारतीय टीम पेरिस ओलंपिक में अब कांस्य पदक के लिए स्पेन से भिड़ेगी।
जर्मनी के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबले में टीम इंडिया 2-3 से पिछड़ रही थी। जर्मनी की टीम एक गोल से आगे थी, भारतीय टीम को गोल चाहिए था। यही पर पीआर श्रीजेश ने गोल खाली कर दिया। दरअसल पीआर श्रीजेश ने अर्जेंटीना के खिलाफ मुकाबले में भी ऐसा किया था और तब भारतीय टीम ने गुरजंत सिंह के तौर पर एक्स्ट्रा फील्ड प्लेयर मैदान पर उतारा था।
अर्जेंटीना के खिलाफ भारतीय टीम का ये फैसला कारगर साबित हुआ और टीम स्कोर बराबर करने में कामयाब रही। भारत ने जैसे ही अर्जेंटीना के खिलाफ स्कोर बराबर किया था, श्रीजेश मैदान पर लौट आए थे। इसी तरह जर्मनी के खिलाफ मुकाबले में भारतीय टीम अंतिम क्वार्टर में पिछड़ गई थी, टीम को गोल की जरूरत थी, और टीम ने एक अतिरिक्त खिलाड़ी को उतारने का फैसला किया।
गोलकीपर का मैदान से हटने का नियम बहुत पुराना है। ओलंपिक और वर्ल्ड कप जैसे एलीट मैचों में टीमें अक्सर ऐसा करती हैं, क्योंकि नॉकआउट के मैचों में, एक-एक सेकेंड मायने रखता है। टीमों को जीत चाहिए होती है। ऐसी स्थिति में जो टीम पिछड़ रही होती है, वह बढ़त बनाने या स्कोर बराबर करने के लिए एक एक्स्ट्रा खिलाड़ी को मैदान पर उतारती हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ये जीत हासिल करने के लिए टीम का आखिरी दांव होता है। ताकि मैच खत्म होने से पहले वह गोल कर सके।
अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (FIH) के नियमों के मुताबिक हर टीम गोलकीपर के साथ मुकाबले में उतर सकती हैं या सिर्फ फील्ड प्लेयर्स के साथ मुकाबला खेल सकती हैं।
– एक गोलकीपर टीम के अन्य खिलाड़ियों के मुकाबले अलग रंग की जर्सी पहनता है। साथ ही सुरक्षा और बचाव के लिए सेफ्टी उपकरण भी पहनता है। जैसे हेलमेट, लेग गॉर्ड्स और किकर्स। इस खिलाड़ी को गोलकीपर के तौर पर जाना जाता है, जो गोलपोस्ट के सामने खड़ा होता है।
– अगर टीम गोलकीपर नहीं उतारती है तो किसी भी खिलाड़ी को गोलकीपर की तरह सुविधा नहीं मिलती है। सारे खिलाड़ी एक रंग की जर्सी पहनते हैं। किसी भी खिलाड़ी को सुरक्षा उपकरण पहनने की मंजूरी नहीं होती है।
2019 तक गोलकीपर की जगह लेने वाले एक्स्ट्रा प्लेयर के पास गोलकीपिंग करने का भी मौका रहता था। वह टीम जर्सी के ऊपर एक अलग कलर का वेस्ट पहनता था। हॉकी में इसे किकिंग बैक कहा जाता था, लेकिन 2019 में यह नियम बदल दिया गया।