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श्रीनाथजी मंदिर में दीपावली एवं अन्नकूट महोत्सव पर दर्शन समय : देखे चार्ट

नाथद्वारा Published by: नानालाल जोशी, नरेन्द्र पालीवाल Updated Tue, 02 Nov 2021 01:08 AM
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श्रीनाथजी मंदिर में दीपावली एवं अन्नकूट महोत्सव पर दर्शन समय : देखे चार्ट  

व्रज - कार्तिक कृष्ण एकादशी (वत्स द्वादशी के आपके शृंगार)

1 November 2021

राजस्थान के उदयपुर जिले से 42 किलोमीटर उत्तर-पूर्व की ओर स्थित नाथद्वारा शहर, जो कभी सिहाड़ ग्राम के नाम से जाना जाता था, में प्रभु श्रीनाथजी मन्दिर में विराजमान हैं श्रीनाथजी। भगवान श्रीकृष्ण के 7 वर्ष बाल्यावस्था का रूप हैं श्रीनाथजी। आज भी यहाँ जन्माष्टमी के उपलक्ष्य पर मध्य रात्रि को कृष्ण जन्म की खुशी में तोपें छोड़ने की परम्परा है। मूलतः यह श्रीवल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वैष्णव संप्रदाय के इष्टदेव हैं। गुजरात, राजस्थान के वैष्णवों द्वारा श्रीनाथजी को मुख्य रूप से पूजा जाता हैै। श्रीनाथजी के भक्त न केवल राजस्थान अपितु देश-विदेश में फैले हैं। आज रमा एकादशी है लेकिन चतुर्दशी क्षय होने के कारण द्वादशी का शृंगार आज लिया गया हैं. विशेष – आज की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है. कहा जाता है कि आज के दिन रमा नाम की व्रजगोपी ने श्री यशोदाजी को नंदालय में दीपावली की बधाई दी थी जिससे नंदालय में नगाड़े बजाये जाते हैं. दीपावली तक प्रतिदिन रौशनी की जाती है. मंदिर के द्वार (नक्कार खाने) के ऊपर नौबत नगाड़े बजाये जाते हैं. 

? अन्नकूट की बड़ी सेवा? 

अन्नकूट की बड़ी सेवा सिद्ध करी जाती हैं. बहूजीयों और बेटीजी के द्वारा अन्नकूट के दिन श्रीजी के सनमुख धराये जाने वाले भात (चांवल) का ढेर अन्नकूट (अर्थात अन्न का शिखर) के ऊपर रखे जाने वाले चारों दिशाओं में घी में सेके हुए कसार के चार बड़े गुंजे और मध्य में एक गुंजा चक्र को सिद्ध किया जाता है चारों दिशाओं के गुंजों पर क्रमशः शंख, चक्र, गदा व पद्म उकेरे (Carving) जाते हैं. सेवाक्रम - विगत दशमी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाईदूज) तक प्रभु पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल अरोगते हैं. आज निज मंदिर में फूल-पत्ती की बाड़ी आती हैं. आज का श्रृंगार तुंगविद्याजी की ओर है और आज का श्रृंगार निश्चित है जिसमें पीली सलीदार ज़री के घेरदार वागा धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पीला चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना की सीधी चन्द्रिका धरायी जाती है. तकिया पर मखमल की खोल आती है. कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

 व्रज में गौवंश ही धन का स्वरुप है अतः श्री ठाकुरजी एवं व्रजवासी गायों का श्रृंगार करते हैं, उनका पूजन करते हैं एवं उनको थूली खिलाते हैं. आज से चार दिन दीपदान का विशेष महत्व है अतः व्रज में सर्वत्र दीपदान और रौशनी की जाती है. राजभोग दर्शन – कीर्तन – (राग : सारंग) मदन गोपाल गोवर्धन पूजत l बाजत ताल मृदंग शंखध्वनि मधुर मधुर मुरली कल कूजत ll 1 ll कुंकुम तिलक लिलाट दिये नव वसन साज आई गोपीजन l आसपास सुन्दरी कनक तन मध्य गोपाल बने मरकत मन ll 2 ll आनंद मगन ग्वाल सब डोलत ही ही घुमरि धौरी बुलावत l राते पीरे बने टिपारे मोहन अपनी धेनु खिलावत ll 3 ll छिरकत हरद दूध दधि अक्षत देत असीस सकल लागत पग l ‘कुंभनदास’ प्रभु गोवर्धनधर गोकुल करो पिय राज अखिल युग ll 4 ll साज – लाल रंग के आधारवस्त्र पर सुनहरी सीलमाँ-सितारा के विद्रुम के जाल के ज़रदोज़ी के काम की एवं हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर लाल मखमल की बिछावट की जाती है. वस्त्र- श्रीजी को आज पीली सलीदार ज़री की सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं पटका धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना तथा सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम, पन्ना की सीधी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल की दो जोड़ी धराये जाते हैं. कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, पन्ना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं. पट प्रतिनिधि का व गोटी सोने की बड़ी आती है. आरसी चाँदी की काँच के कलात्मक काम की आती है. विगत दशमी से ही प्रतिदिन प्रभु के सम्मुख उत्थापन उपरांत पुष्प-पत्तियों की बाड़ी धरी जाती है जो शयन उपरांत बड़ी कर दी जाती है. संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीमस्तक व श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के आभरण धराये जाते हैं व श्रीमस्तक पर सुनहरी लूम-तुर्रा धराये जाते हैं. शयन दर्शन में मणिकोठा व डोलतिबारी में हांडी में रौशनी की जाती है वहीं निज मन्दिर में कांच मृदंग में रौशनी की जाती है. दशमी से प्रतिदिन शयन के अनोसर में प्रभु को सूखे मेवे और मिश्री से निर्मित मिठाई, खिलौने आदि का थाल आरोगाया जाता है. इसके अतिरिक्त दशमी से ही अनोसर में प्रभु के सम्मुख इत्रदान व चोपड़ा (इलायची, जायफल, जावित्री, सुपारी और लौंग आदि) भी रखे जाते हैं. ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी. इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में बूंदी के लड्डू अरोगाये जाते हैं. 

श्रीनाथजी मंदिर में दीपावली एवं अन्नकूट महोत्सव पर दर्शन समय : देखे चार्ट  

नानालाल जोशी, नरेन्द्र पालीवाल

साभार मंदिर ट्रस्ट

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