नितिनमोहन शर्मा...
'सरकार ' का 'इक़बाल' फिर से बुलंद हुआ...'शिव' का ' राज ' निष्कंटक हुआ...अब 2023 तक शिवराज ही रहेंगे...दिल्ली में अभी भी मजबूत है मुख्यमंत्री... आदि-इत्यादि। एक नोकरशाह को लेकर इस तरह की बाते किसी ओर राज्य में शायद ही हो। लेकिन एमपी तो अजब भी है और गज़ब भी। लिहाजा यहां नोकरशाह भी 'नाक के बाल' हुआ करते है जो ' सरकार ' की 'सेहत' पर सीधा असर डालते है। तभी तो एक नोकरशाह के एक्सटेंशन ने प्रदेश के प्रशासकीय गलियारों से ज्यादा, प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। इसे हलचल के पीछे भाजपा के अंदर ही शह मात का एक खेल भी खेला गया जिसमें ' श्रीमंत ' के हाथ खाली रह गए।
ये भाजपा वालो को ही क्यो नया मुख्य सचिव नही मिल पाता? क्या कारण है कि इतने दिन में सरकार एक नया मुख्य सचिव भी नही तलाश पाती। जबकि उसे पता होता है की मौजूदा मुख्य सचिव का कार्यकाल कब पूरा हो रहा है। ये मुख्य सचिव लोग भाजपा के शासनकाल में ही क्यो विस्तार पाते है? कांग्रेस की सत्ता के दौरान ऐसा एक मर्तबा भी नही हुआ और न आमतौर पर होता है। मध्यप्रदेश के इतिहास में केवल चार मर्तबा मुख्य सचिव को विस्तार यानी नोकरी का समय खत्म होने के बाद भी एक्सटेंशन मिला है और चारो बार ये काम भाजपा सरकार के दौरान हुआ। एक बार सुंदरलाल पटवा के कार्यकाल में और तीन बार शिवराज सिंह चौहान ने एक्सटेंशन दिलवाए। आखिर ऐसी क्या सत्ता से साठगांठ कि भाजपा नया अफसर लाने की बजाय पुराने को ही हमेशा अपने साथ बनाये रखना चाहती है?
तल्खी भरे ये सवाल कांग्रेस के नही और न प्रतिपक्ष नेता के। ये सवाल तो स्वयम भाजपा के अंदर ही शोर मचा रहे है। शोर मचाने वालो में इसी लाइन के साथ एक बार फिर 'दिल्ली' को आगाह किया है। मसला प्रदेश के मुख्य सचिव इक़बाल सिंह बेस का है। उन्हें हाल ही में सेवा विस्तार दिया गया है। वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की खास पसंद है। नतीजतन सीएस के सेवा विस्तार को, सीएम की मजबूती की तोर भी देखा और जांचा गया है। कतार में अनुराग जेन ओर मोहम्मद सुलेमान थे लेकिन आखरी दिन बाजी पलट गई।
अब सब तरफ सरकार का इक़बाल बुलंद होने का शोर मचा हुआ है और सीएम को भी मिशन 2023 तक स्थाई माना जा रहा है। अब ये तो गुजरात चुनाव के बाद तय होगा कि एमपी को लेकर ' दिल्ली ' की रणनीति क्या है? लेकिन सीएस के एक्सटेंशन ने एक बार फिर शिवराज-तोमर की जुगलबंदी को जिंदा कर दिया है। सूत्र बताते है कि अगर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री का साथ नही देते तो इक़बाल सिंह का फिर से कुर्सी पर लौटना मुश्किल था। तोमर वैसे भी शिवराज के संकट मोचक है। जब भी प्रदेश में शोर मचता है कि ' मामा तो गयो ' ....तब संकटमोचक के रूप के तोमर ही शिवराज की दिल्ली में ढाल बन जाते है। ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा में इंट्री के बाद शिव तोमर की जुगलबंदी में एक लंबा इंटरवल आ गया था। अब उन्ही सिंधिया के कारण ये मध्यांतर खत्म हुआ। तोमर की जानकारी में ये मजबूती से जँचाया गया कि इक़बाल को प्रदेश में कौन नही चाहता? बस उसके बाद सीएम का काम आसान हो गया। प्रदेश के मामले में 'दिल्ली' आज भी शिवराज की तुलना में तोमर को ही तवज्जों देती है। इस मामले में जब सबको लग रहा था कि शिवराज दिल्ली में कमजोर हो चले है और शायद ही इक़बाल सिंह को सेवा विस्तार मिले। अनुराग जैन के प्रति पंत प्रधान के ' अनुराग' के मद्देनजर ये तय माना जा रहा था कि अगले सीएस वे ही होंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इक़बाल का एक्सटेंशन लेकर सीएम ने सबको चौका दिया।
श्रीमंत कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य ओर उनके कोटे के मंत्री मुख्य सचिव को लेकर शुरू से ही असहज थे। सिंधिया चाहते थे कि प्रदेश में नया मुख्य सचिव आये। लेकिन ग्वालियर चंबल बेल्ट की भविष्य की भाजपाई राजनीति आड़े आ गई। तोमर ओर उनकी टीम उसी दिन से अपने इलाके में असहज थी, जिस दिन से 'महल' की राजनीति..भाजपा से जाकर गले मिल ली। ताजा नगरीय निकाय चुनाव में चंबल वाली इस पट्टी में हुए भाजपाई नुकसान को भी इसी असहजता से जोड़ा गया जिसमे भाजपा ग्वालियर तक हार गईं और तोमर की मुरैना से भी पार्टी को हाथ धोना पड़ा। तोमर चूंकि सुलझी हुऐ नेता है ओर बोलवचन से ज्यादा कर के दिखाने में विश्वास करते है। लिहाजा वे ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे। सीएम ने सीएस के मूददे पर उनसे ही 'वीटो पावर' मांगा और परिणाम सामने है।
इकबाल सिंह बैंस ऐसे चौथे अफसर हैं, जिन्हें एक्सटेंशन मिला है। इससे पहले मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के कार्यकाल में आरपी कपूर को 6 माह का एक्सटेंशन दिया गया था। इसके बाद ये काम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। शिवराज पहले आर परशुराम और बाद में वीपी सिंह को 6-6 माह का एक्सटेंशन दिला चुके हैं।