नितिनमोहन शर्मा...✍️
इंदौर :
आपने बाजार में दुकान खोली। खूब सजाई सँवारी। किस्मत ने साथ दिया। पहले ही दिन से ग्राहकी जबरदस्त। लाइन लगने लगी। इलाके में भीड़ बढ़ने लगी। आपका धंधा परवान चढ़ गया। अब कोई आपसे कहे कि आप दुकान बंद कर दो। आपके कारण इलाके में बहुत लोग आ जा रहे हैं। आप तो हतप्रभ रह जाओगे न? कि इसमे मेरा क्या गुनाह? भीड़ बढ़ गई तो उसको सम्भालने की जिम्मेदारी तो उनकी है न, जिनके जिम्मे भीड़ प्रबंधन का काम है और उसी काम की पगार मिलती है। पर आप अपना काम शिद्दत से करने की बजाय दुकान ही बन्द करने का फ़रमान दे रहे हो। है न हैरत की बात।
इंदौर में ये हो रहा है। बायपास पर एक नए मॉल के साथ। मॉल तेजी से लोकप्रिय हुआ। इंदौरी अपने उत्सवी मिजाज के अनुरूप टूट पड़े मॉल पर। रास्तों पर जाम लगने लगा। ख़ुलासा ने भी ऐसे उत्साही लालो पर तंज कसा। उसके बाद सबको लगा भी की अब ट्रेफ़िक बंदोबस्त चुस्त दुरुस्त होगा। कोई विशेष दस्ता बायपास पर तैनात होगा। कुछ चिंतन मंथन होगा। हुआ भी। लेकिन नवनीत नहीं निकाला।
उलटा मॉल को कहा गया है कि आप शनिवार-रविवार मॉल 8 30 बजे बन्द कर दे। दिन भी वो, जो मॉल की सप्ताहभर की कमाई के मुख्य आधार। अब मॉल वाले हैरत के साथ असमंजस में है कि क्या इस दिन के लिए इन्दौर में इतना मोटा इन्वेस्टमेंट किया था? मॉल को तय समय पर बंद करे तो लाखों का नुकसान। नही करें तो साहब बहादुरों के ख़फ़ा होने का डर।
मॉल को जल्दी बन्द करने के लिए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और प्रवासी भारतीय सम्मेलन का हवाला दिया गया है। अब सम्मेलन में से किसी ने 'फॉनिक्स' जाने का मन बनाया और उसे पता चले कि मॉल तो यहां 8 30 बजे ही बन्द हो जाता है। तो सोचिए आप जिसके लिए पलक पाँवडे बिछा रहे है, वो क्या सोचेगा? जिस तरह की आपकी ' भागीरथी ' तेयारी है, इस हिसाब से तो मॉल आपकी तैयारियों में चार चांद ही लगा रहा है न? तो फिर उस तक आने जाने तक की राह आसान करने के बजाय आप कह रहे है कि मॉल ही जल्दी बन्द कर दो। पार्किंग फ्री कर दो। इंट्री फीस लगा दो। आदि इत्यादि।
तो फिर आप सब किसलिए है? इतना भारी भरकम अमला क्यो? ये कलफ़ लगी वर्दियां किसलिए? अधिकार और अधिकारी क्यो? जब सब मॉल वाले को ही करना है तो उसे भी दो वर्दी। अधिकार। अमला। वो तो व्यापारी है। आपके शहर में कमाने धमाने आया है। न कि आपके शहर के बायपास का ट्रेफ़िक सुधारने। आप महज आठ पंद्रह दिन की बात कहकर बचना चाह रहे है, लेकिन पलभर सोचिए ये बात देश के अन्य हिस्सों तक जाएगी तो आपके शहर और आपके विषय मे क्या सोचेगा वो कार्पोरेट जगत, जिसके लिए आप बीते महीनेभर से बिछे बिछे जा रहे हो।