इंदौर :
यह विचार शुक्रवार को परशुराम कथा के समापन अवसर पर ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने व्यक्त किए। आयोजक विश्व ब्राह्मण समाज संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष (पूर्व राज्यमंत्री दर्जा) पं. योगेन्द्र महंत ने बताया कि कथा के समापन पर बड़ी संख्या में ब्राह्मण समाज के विभिन्न घटकों के पदाधिकारी मौजूद थे। करीब एक घंटा व्यासपीठ के पूजन में ही लग गया।
प्रमुख रूप से महामंडलेश्वर रामचरणदास जी, महामंडलेश्वर विजय रामजी महाराज, महंत श्री दीनबंधु दासजी हनुमान गढ़ी अयोध्या, राष्ट्रीय कवि सत्यनारायण सत्तन, गंगा पांडे, अमरदीप मौर्य, पं. योगेन्द्र महंत, राजेश शर्मा, सुभाष दुबे, पवन दास महाराज, रामचंद्र शर्मा वैदिक, प्रकाश गौड़, राधेश्याम ज्योतिषी, सुनील दिक्षीत, अशोक टेमले, अशोक पांडे, श्री भूरा महाराज, विजय अड़ीचवाल, विकास वैष्णव, राजेंद्र गर्ग, अजय मालवीय, गोविंद शर्मा, सावित्री महंत, अपर्णा जोशी, कमला द्विवेदी, सीमा उपाध्याय, कैलाश पाराशर, लीलाधर शर्मा, पुष्प कुमार भार्गव, बीके शर्मा, घनश्याम वैष्णव, गोपाल पुजारी, विकास अवस्थी आदि ने व्यासपीठ का पूजन कर महाआरती की।
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक अलग-अलग वेशभूषा, बोली और भाषा और गोरे व काले रंग के भारतीय निवास करते हैं। दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जहां पर रंग, जन्म और वर्ण का भेद नहीं है। सामाजिक समरसता का अनोखा उदाहरण यही पर देखने को मिलता है।
शुक्रवार को भजनों की प्रस्तुति में हंसदास मठ में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु नृत्य करते देखते गए। मंगल भवन.... गुरु मेरी पूजा... यह रामायण है पूर्णकथा श्री राम की...शंकर भोलेनाथ है हमारा तुम्हारा...आदि भजनों की प्रस्तुतियों ने रात तक समां बांधे रखा। शुक्रवार को दोपहर से रात तक हंसदास मठ पर ब्राह्मण समाज का मेला लगा रहा। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां भगवान परशुराम कथा के समापन अवसर पर मौजूद थे।
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि दुनिया के किसी भी कोने में चले जाए सभी ओर परंपरा और संस्कृति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी है। भारत अकेला एकमात्र ऐसा देश है जहां ऋषि मुनियों के तप और उनके ज्ञान का आलोक विद्यमान था और आज भी है। भारतवासी अगर अपने सामथ्र्य पर विश्वास कर कर्मों को प्रधान बना लेंगे तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। फिर से हमारा भारत सोने की चिडिय़ा बनेगा, लेकिन इसके लिए प्रत्येक भारतीय को अपने कर्म का सामथ्र्य खड़ा करना होगा।
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि चिरंजीव देव भगवान परशुराम श और शा दोनों के ज्ञाता थे। उनको वरदान था कि वे मन की गति से (पवन वेग) कही भी आ जा सकते हैं। इसलिए वे अपने भक्तों पर अगाध कृपा रखते हैं, जो भगवान परशुराम में विश्वास करता है उनके साथ वे हर घड़ी मौजूद रहते हैं।
ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि सनातन संस्कृति में माता, बहन और पत्नी (मातृ शक्ति) को पूजनीय माना गया है। इनका सम्मान हमारे आदर्शों के मूल में है। आज की पीढ़ी इनसे दूर हो रही है। इससे सामाजिक परिदृश्य खराब हो रहा है और हम दुख और कष्टों को निमंत्रण दे रहे हैं। मातृ शक्ति का सम्मान करने से हमारी संस्कृति का संरक्षण होगा और नई पीढ़ी कष्टों से दूर रहेगी।
विश्व ब्राह्मण समाज संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. योगेन्द्र महंत ने बताया कि तीन दिवसीय श्री परशुराम था के समापन पर महाप्रसादी का आयोजन कथा स्थल श्री हंसदास मठ पर रखा गया था, जिसमें हजारों की संख्या में समाजजनों की सहभागिता रही। देर रात तक प्रसादी का क्रम जारी रहा। 200 से ज्यादा समाजजनों और भक्तगणों ने व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने में सहयोग किया।