Indore News : हाई कोर्ट के आदेश और सरकार द्वारा 217 करोड़ 85 लाख रुपये परिसमापक के खाते में जमा कराने के बावजूद हुकमचंद मिल मजदूरों को अब तक एक रुपया भी नहीं मिला। पांच फरवरी को एक बार फिर हाई कोर्ड की इंदौर खंडपीठ के समक्ष मामले में सुनवाई होना है।
परिसमापक के खाते में रुपये 20 दिसंबर 2023 को ही ट्रांसफर हो चुके थे। 25 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने खुद सांकेतिक रूप से इस राशि का चेक परिसमापक को सौंपा था। इसके बाद मजदूरों को बहुत जल्दी उनके खातों में मुआवजे का पैसा पहुंचने का विश्वास हो गया था। मजदूरों ने सुनहरे सपने बुनना शुरू भी कर दिया था, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उनका संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। कोर्ट और सरकार से तो मजदूर जीत गए लेकिन कोर्ट के आदेश पर बनी तीन सदस्यीय समिति के सामने उनका संघर्ष जारी है।
समिति दस्तावेजों के नाम पर मजदूरों से 33 वर्ष पहले के सबूत मांग रही है। ये दस्तावेज उन मजदूरों से मांगे जा रहे हैं जो अभी जिंदा हैं। जिन मजदूरों की मृत्यु इन 33 वर्षों में हो चुकी है उनके स्वजन की हालत क्या होगी, समझी जा सकती है। मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के समक्ष पांच फरवरी को एक बार फिर इस मामले में सुनवाई है। मजदूर नेताओं का कहना है कि वे कोर्ट के समक्ष उपस्थित होकर मजदूरों की व्यथा बताएंगे। उन्हें उम्मीद है कि कोर्ट इस पर संज्ञान लेगी और उन्हें राहत देगी।
हुकमचंद मिल प्रबंधन ने 12 दिसंबर 1991 को मिल बंद कर दिया था। उस समय मिल में 5895 मजदूर काम करते थे। अपने बकाया भुगतान और मुआवजे के लिए मजदूरों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वर्ष 2007 में हाई कोर्ट ने मिल मजदूरों के पक्ष में 228 करोड़ 73 लाख रुपये मुआवजा तय किया था। यह राशि मजदूरों को मिल की जमीन बेचकर दी जाना थी, लेकिन मिल की जमीन बिक नहीं सकी और मजदूरों को मुआवजा नहीं मिला।
हाल ही में नगर निगम और मप्र गृह निर्माण मंडल ने आपसी सहमति से मिल की जमीन पर आवासीय और व्यवसायिक प्रोजेक्ट लाने के लिए समझौता किया है। इस समझौते के पालन में मप्र गृह निर्माण मंडल ने 217 करोड़ 85 लाख रुपये मिल परिसमापक के खाते में 20 दिसंबर 2023 को जमा करा दिए हैं। कोर्ट के आदेश पर बनी तीन सदस्यीय समिति को मजदूरों का सत्यापन करके इस रकम को मजदूरों के खाते में ट्रांसफर करना है लेकिन वह ऐसा नहीं कर पा रही।
मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश, हरनामसिंह धालीवाल ने बताया कि समिति ने अब तक एक भी मजदूर के दस्तावेज को सत्यापित नहीं किया है। समिति के तीन सदस्यों के हस्ताक्षर के बगैर मामला आगे नहीं बढ़ेगा। इसके चलते कोर्ट के आदेश और परिसमापक के खाते में 217 करोड़ 85 लाख रुपये जमा कराने के बावजूद मजदूरों को पैसा नहीं मिल रहा।