नई "नगर सरकार" के नए "मंत्रिमंडल" गठन में भी सत्ता जीत गई और संगठन हार गया। न संगठन मंत्रीमंडल चयन में चौका पाया और संगठन के सपूत दे पाया। नए मंत्रिमंडल "कमाऊ पूतो" से लबरेज बनकर आया। विधायको की ऐसी रंगदारी चली की शहर के सांसद और मंत्री तक खाली हाथ रह गए। भारी गुटबाजी ओर शह मात के लंबे चले खेल के बाद गुरुवार को महापौर परिषद की घोषणा हो तो गई लेकिन इस कवायद ने एक बार फिर सत्ता के आगे संगठन को बोना साबित कर दिया। पड़े लिखे महापौर के लिए पड़ी लिखी और योग्य उम्मीदवारो वाली एमआइसी देने के सब दावे भी धरे रह गए। अब पुष्यमित्र को "जीतू बाबा" से लेकर " मनीष मामा" तक से काम लेना है। उधर विभाग बंटवारे को लेकर भी उठापठक शुरू हो गई। अब नेताओ को कमाऊ पूतो के लिए कमाऊ विभाग की तलाश है और वे एक बार फिर कमर कसकर संगठन से दो दो हाथ करने को तैयार है। राजेन्द्र राठौर, निरंजन सिंह चौहान, अश्विन शुक्ला, बबलू शर्मा और मनीष शर्मा को बड़े विभाग देने की तैयारी है।
सांसद-विधायक के बीच चल रही जंग में जीत विधायक मालिनी गौड़ की हुई। सांसद शंकर लालवानी की चाल को मात देने के लिये मालिनी में अपना पत्ता आखरी तक छुपा कर रखा। किसी को उम्मीद ही नही थी कि मालिनी गौड़ केम्प से प्रिया डांगी का नाम सामने आ जायेगा। ये नाम सांसद की उस काट का अकाट्य जवाब था जो वो कंचन गिडवानी के नाम के साथ महिला कार्ड का दबाव बनाए हुए थे। एमआइसी में एक महिला पार्षद की अनिवार्यता के मद्देनजर सांसद गिडवानी को लेकर आश्वस्त थे। लेकिन मालिनी गौड़ ने युवा महिला पार्षद को सामने कर सांसद लालवानी को चारों खाने चित कर दिया। कमल लड्डा ओर राकेश जेन में से गोड़ केम्प ने राकेश पर हाथ रखा ओर पहले दिन से तय माने जा रहे कमल लड्डा बाहर हो गए। लड्डा की निष्ठाओं को लेकर " अयोध्या" सशंकित थी। लिहाजा उनका बड़ा ही करीने से शिकार कर लिया गया। टिकट वितरण से लेकर एमआइसी चयन तक मे विधनासभा4 में वो ही हुआ जो मालिनी गौड़ ने चाहा।
एमआइसी में दो नाम ऐसे है जो सीधे संगठन की पसन्द है। एक निरंजन सिंह चौहान और दूसरा अभिषेक शर्मा बबलू। हालांकि निरंजन को हारे हुए विधायक सुदर्शन गुप्ता अपने कोटे में गिना रहे है, लेकिन भाजपा को जानने समझने वाले जानते है कि निरंजन सिंह का चयन किस चेनल से हुआ है। बबलू शर्मा पहले ही दिन से वी डी शर्मा के भरोसे थे। इन दोनों नामो का नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे का सपोर्ट भी मिला। कृष्णमुरारी मोघे भी चौहान के मामले में ट्रम्प कार्ड साबित हुए।
पार्षद टिकट वितरण में विधायक रमेश मेंदोला के हाथ बांधने वाले राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय में एमआइसी चयन में विधनासभा 2 में कोई हस्तक्षेप नही किया। उन्होंने इस बार मेंदोला को फ्री हैंड किया। नतीजतन दागी छवि के बाद भी जीतू यादव की एंट्री एमआइसी में हो गई। कैलाश विजयवर्गीय यहां से पूजा पाटीदार का नाम चाह रहे थे लेकिन उन्होंने रमेश मेंदोला की पसन्द को ध्यान में रखते हुए पूजा का नाम आगे नही किया। राजेन्द्र राठौड़ पहले दिन से निर्विवाद थे।
विधायक महेंद्र हार्डिया की विधनासभा 5 में प्रणव मंडल की इन्ट्री टल गई। हार्डिया की तरफ से प्रणव मण्डल ओर राजेश उदावत का नाम प्रमुख था। ये दोनों बाबा के अनमोल रतन कहलाते है। यहां सर उदावत के साथ नंदू पहाड़िया को लिया गया। नंदू वैसे तो नाम हार्डिया का ही है लेकिन उनके दो नम्बर कैम्प से भी प्रगाढ़ सम्बन्ध है। विधनासभा 5 से महेश बसवाल भी दौड़ में थे। आरएसएस और भाजपा संगठन की पसन्द भी वे थे लेकिन सता के आगे संगठन की नही चल पाई।
विधनासभा 3 से आकाश विजयवर्गीय की तरफ सर एकमात्र नाम मनीष शर्मा उर्फ मामा का दिया गया था और वे ही बनकर भी आये। मामा को रोकने के लिए भाजपा में ही एक गुट ने पूरी कोशिश की। उनके कुछ कारनामो की फ़ाइल ओर पेपर कटिंग भोपाल तक खूब दौड़ाई गई। दागी प्रचारित कर रोकने की कोशिशें भी हुई लेकिन कैलाश विजयवर्गीय की दो टूक के चलते मामा की एंट्री कोई रोल नही पाया।
पूर्व पार्षद मनोज मिश्रा ने पत्नी भावना मिश्रा के लिए जोरदार कोला लड़ाया। भावना मिश्रा का नाम गुरुवार सुबह तक लिस्ट में था। अड़चन हारे हुए विधायक सुदर्शन गुप्ता की अंतिम समय तक रही। मिश्रा और गुप्ता दोनो सीएम के भरोसे थे। विधनासभा 1 से अगर भावना मिश्रा का नाम मुकर्रर होता तो सुदर्शन खाली हाथ रह जाते। उनके कोटे से एकमात्र नाम अश्विनी शुक्ला का था जो खारिज हो जाता। निरजंन सिंह चौहान ने तो चुनाव जीतते ही स्वयम के तार प्रदेश व स्थानीय नेतृत्व से जोड़ लिए थे। इसलिए गुप्ता केवल अश्विनी के नाम के साथ मैदान में थे। जब विधायको की मानी गई तो पार्टी ने विधानसभा एक के पूर्व विधायक को एक एमआइसी देकर संतुष्ट कर दिया।