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मध्यप्रदेश में फिर मंत्रीमंडल में फेरबदल की अटकलें तेज : प्रशासनिक तिकड़ी योजनाओं को बटटे खाते में डाल रही है...!

भोपाल Published by: Paliwalwani Updated Thu, 03 Nov 2022 10:47 PM
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भोपाल : देवउठनी ग्यारस के बाद मध्यप्रदेश में फिर मंत्रीमंडल फेरबदल की अटकलें तेज हो गई हैं. सूत्रों के मुताबिक अगले वर्ष विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान खाली पड़े चार-पांच मंत्रियों के पद भर सकते हैं. इसके साथ ही कुछ मंत्रियों के विभाग भी बदले जाने की चर्चा की आहट तेज हो गई हैं.

हालांकि पार्टी के नेता इसकी अधिकृत पुष्टि नहीं कर रहे, लेकिन इतनी जरूर अंदरखाने की खबर यह है कि दिल्ली आलाकमान से भी प्रेशर है कि रिक्त पड़े मंत्रियों के पद शीघ्र भरें. क्योंकि इंटेलीजेंस की रिपोर्ट कुछ पक्ष में जाती नहीं दिख रही हैं. वहीं अन्य पार्टियों द्वारा कराये गये निजी सर्वे में भी भाजपा को अगले चुनावी वर्ष में बेहतर माहौल में नहीं बताया जा रहा हैं. 

इस सर्वे के हिसाब से कांग्रेस के नेता अपने आपको अगली सरकार के लिये तानाबाना बुनने लगे हैं. कुल मिलाकर सूत्रों का कहना है कि भाजपा को अब नये पुराने सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को फिर से एकजुट करने की प्लानिंग करनी पड़ेगी.

शिवराज कर रहे मेहनत, प्रशासनिक तिकड़ी योजनाओं को बटटे खाते में डाल रही है

हालांकि पार्टी फीडबैक के आधार पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तो जमकर मेहनत कर रहे है और अपनी सरकार की योजनाओं से आम आदमी को लाभान्वित करने का प्रयास भी कर रहे है, लेकिन दंभ में बैठी प्रशासनिक तिकड़ी योजनाओं को बटटे खाते में डाल रही है और आम आदमी से कार्यकर्ताओं व नेताओं की दूरियां बढ़वा रही हैं. मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी अब सरकारी अधिकारियों के रवैये से नाराज हैं. कुल मिलाकर पार्टी के वरिष्ठ व निष्ठावान नेता इस नाराजगी की नब्ज को समझने लगे हैं. यह सब ऐसी स्थिति में हो रहा है, जब मुख्यमंत्री स्वयं जनसंपर्क विभाग का दायित्व खुद ने संभाल रखा हैं. उसके बाद भी पत्रकारों की जमकर उपेक्षा हो रही हैं. कुल मिलाकर अब मुख्यमंत्री को जनसंपर्क विभाग छोड़कर किसी नये मिलनसार योग्य मंत्री को इसकी कमान सौंपने की चर्चा तेजी से हो रही हैं. सूत्र यह भी बताते है कि कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं की स्थिति वार्तामान में ठीक नहीं बताई जा रही हैं. वहीं भाजपा के नेताओं में जमकर आक्रोश दिख रहा है कि उनकी उप्रेक्षा पार्टी के आला नेताओं के साथ-साथ प्रशासकीय अधिकारी भी बैलगाम होकर अफसरशाही हावी होने के कारण छोटे कार्यकर्ताओं में जमकर नाराजगी छाई हुई हैं.

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