ज्योतिष में 9 रत्नों का वर्णन मिलता है। इन रत्नों का संबंध किसी न किसी ग्रह से होता है। रत्न धारण करने के ज्योतिष में प्रमुख दो कारणों का वर्णन मिलता है। जिसमें प्रमुख कारण किसी भी ग्रह की ताकत बढ़ाना माना जाता है। मतलब अगर वो ग्रह किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में कमजोर स्थित है और उसका फल नहीं मिल पा रहा है। तो उस ग्रह से संबंधित रत्न धारण किया जाता है। दूसरा कारण अगर देखा जाए तो वह यह है कि अगर आपको जिस ग्रह से संबंधित कोई रोग या अन्य परेशानी है। तो रत्न धारण किया जाता है।
सूर्यमणि सूर्य ग्रह का रत्न है। सूर्यमणि सरकारी राजकीय क्षेत्र में सफलता पाने के लिए बहुत उपयोगी होता है। साथ ही ये रत्न उच्चाधिकारियों के साथ आपके संबंधों को बेहतर बना कर रखने में भी सहायक बन सकता है। इसको धारण करने से पिता और परिवार से रिश्ते अच्छे होने लगते हैं। इसको धारण करने से चेहरा चमकने लगता है और आत्मविश्वास बढ़ जाता है। जिन लोगों को हड्डी और आंखों से संबंधित रोग हैं वो लोग भी सूर्यमणि धारण कर सकते हैं।
-मेष, सिंह और धनु लग्न वाले सूर्यमणि धारण कर सकते हैं।
-कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न में साधारण परिणाम देता है।
-अगर व्यक्ति को ह्रदय और नेत्र रोग है तो भी वह कर सकता है।
-अगर धन भाव, दशम भाव, नवम भाव, पंचम भाव, एकादश भाव में सूर्य उच्च के स्थित हैं तो भी सूर्यमणि धारण कर सकते हैं।
-कन्या, मकर, मिथुन, तुला और कुम्भ लग्न में सूर्यमणि धारण करना खतरनाक हो सकता है।
-सूर्यमणि गुलाबी या लाल रंग का अच्छा माना जाता है। लेकिन ये बाजार में कम ही मिलता है।
-सूर्यमणि का वजन कम से कम 6 से सवा 7 रत्ती का होना चाहिए। या फिर शरीर के वजन के अनुसार धारण कर सकते हैं।
-तांबा या सोने के धातु में सूर्यमणि को धारण करना बेहद शुभ रहता है।
-सूर्योदय होने के एक घंटे बाद सूर्यमणि रत्न को धारण कर सकते हैं।
अंगूठी को गाय के दूध और गंगाजल से शुद्ध कर लें। उसके बाद मंदिर के सामने बैठकर एक माला सूर्य देव के मंत्र ऊं सूर्याय नम: का जाप करें और फिर अंगूठी को धारण करें। इसके बाद सूर्य देव से संबंधित दान किसी मंदिर के पुजारी को देकर आएं।