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कांचीपुरम में युवा धर्म संसद: मेरा अविस्मरणीय अनुभव : नैवेद्य पुरोहित

आपकी कलम Published by: नैवेद्य पुरोहित Updated Fri, 26 Sep 2025 08:06 PM
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नैवेद्य पुरोहित

पत्रकारिता के विद्यार्थी होने के नाते हम अक्सर यह सुनते हैं कि व्यक्ति फील्ड में ही सबसे ज्यादा सीखता है।ग्राउंड रिपोर्टिंग ही सबसे ज़रूरी है। हमारे कुलगुरु आदरणीय विजय मनोहर तिवारी सर का साफ कहना है कि डिग्री केवल कागज़ का टुकड़ा है नौकरी के लिए एक गेटपास है।

ज़मीनी अनुभव बहुत ज़रूरी है, ताकि आगे जाकर विद्यार्थी सिर्फ किताबी ज्ञान में नहीं, हकीकत में ग्राउंड लेवल पर भी दक्ष हों। उनका फोकस है कि विद्यार्थियों को आउटडोर रिपोर्टिंग के लिए भेजा जाए क्योंकि प्रायः यह देखा गया है कि हमसे पहले की बैचेस के विद्यार्थी जो इंडस्ट्री में गए उन्हें किताबी ज्ञान तो था पर वास्तविक ज़मीनी हकीकत से वो रूबरू नहीं थे वहां उस समय उन्हें फील्ड पर काम करने में कठिनाई हुई।

ऐसा हम लोगों के साथ न हो और आने वाली बैचेस के साथ न हो इसलिए कुलगुरु का यह सख्त निर्देश है कि हम आउटडोर रिपोर्टिंग के लिए जाए। इसी सोच के तहत हम चार छात्रों को अंकित आनंद झा, शशांक मिश्रा, पुष्कर दीक्षित और मुझे चुना गया कि हम भोपाल से 1500 किलोमीटर दूर तमिलनाडु के ऐतिहासिक नगर कांचीपुरम में आयोजित “युवा धर्म संसद” की मीडिया रिपोर्टिंग करें और साथ ही तीन दिन तक "विकल्प" अख़बार भी निकाले। "विकल्प" माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग द्वारा प्रकाशित प्रायोगिक समाचार पत्र है। 

"अयोध्या में हनुमंत निवास सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर पूज्य आचार्य श्री मिथिलेशनंदिनी शरण जी महाराज ने हम चारों साथियों का शॉल पहना कर सम्मान किया। साथ में कुलगुरू विजय मनोहर तिवारी सर और दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान के निदेशक मुकेश मिश्रा जी।"

यह आयोजन सेवाज्ञ संस्थानम् द्वारा हर वर्ष सात मोक्षदायिनी नगरियों में से एक में किया जाता है। काशी, अयोध्या, मथुरा और हरिद्वार के बाद इस बार कांचीपुरम की बारी थी। आगे यह संसद उज्जैन और फिर द्वारका में होगी। मोक्षदायिनीनगरियों को सप्तपुरी भी कहा जाता है और इनका वर्णन शास्त्रों में मिलता है: "अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका। पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥" इन सात नगरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी (वाराणसी), कांची (कांचीपुरम), अवंतिका (उज्जैन), और द्वारावती (द्वारका) में निवास या मृत्यु से मोक्ष प्राप्ति की मान्यता है। 

यात्रा की शुरुआत 

10 सितम्बर 2025 की दरमियानी रात 2 बजे हम प्रो. लोकेन्द्र सिंह राजपूत सर के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय परिसर से रवाना हुए और भोपाल रेलवे स्टेशन पहुँचे। 3:25 की ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस में बैठकर हम दक्षिण की ओर निकल पड़े। 25 घंटे की लंबी रेलयात्रा देखते ही देखते बीत गई। 11 सितम्बर की भोर में, 4:30 बजे हम चेन्नई के प्रसिद्ध पुरैची थलाइवर डॉ. एम.जी. रामचन्द्रन सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर उतरे। स्टेशन की चहल-पहल और दक्षिण भारतीय वातावरण ने हमें तुरंत नया अनुभव दिया।

चेन्नई से कांचीपुरम : एक और रोमांच

स्टेशन से बाहर निकलकर वहां हमने एक टैक्सी वाले से बात की जो हमें लगभग 70 किलोमीटर दूर कांचीपुरम के श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती विश्व महाविद्यालय लेकर जाए। टैक्सी वाले से मोलभाव करने के बाद हमने गाड़ी में सामान रखा और सुबह 6:45 पर हम अपने गंतव्य पहुँचे। गेस्ट हाउस में थोड़ी देर विश्राम के बाद हम स्थानीय स्वाद का आनंद लेने के लिए पास ही स्थित श्री शंकरा आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज के हॉस्टल की मेस गए। वहाँ की पारंपरिक दक्षिण भारतीय थाली का स्वाद वाकई यादगार रहा।

कांचीपुरम दर्शन : आध्यात्मिक धरोहरों का स्पर्श

दोपहर का भोजन करने के बाद हम सभी ने कांचीपुरम शहर की प्राचीन और आध्यात्मिक विरासत को देखा। सबसे पहले श्री कांची कामाक्षी अम्मन मंदिर में दर्शन करने गए। यह 51 शक्तिपीठों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस मंदिर को ईस्टर्न हेमिस्फेयर का केंद्र भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि असुर भंडासुर का वध करने के लिए जन्म लेने के बाद, देवी यहां कन्या स्वरूप धारण करके विराजमान हुई थी। यह मूर्ति स्वयंभू प्रतिमा है जिसका अर्थ है कि यह प्रकट हुई है निर्मित नहीं! मंदिर के वातावरण ने हमें मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद हम उलागलंथा पेरुमल मंदिर गए। 

उलागलन्था पेरुमल मंदिर

इस मंदिर का मुख्य द्वार बड़ा आकर्षक रंगबिरंगा था। भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी यह पावन स्थली दिव्य आभा बिखेर रही थी। माना जाता है कि असुर राजा महाबली के अभिमान को चूर करने के लिए भगवान विष्णु के वामन अवतार यहां प्रकट हुए थे। मंदिर का उल्लेख छठी से नौवीं शताब्दी ईस्वी के अलवर संतो के प्रारंभिक मध्ययुगीन तमिल ग्रंथ नालायरा दिव्य प्रबंधम में किया गया है। यहां दर्शन के बाद हम एकाम्बरेश्वर मंदिर गए। 

एकाम्बरेश्वर मंदिर

यहाँ की सबसे बड़ी विशेषता एक आम का पेड़ है जो लगभग 3500-4000 वर्ष पुराना है। पेड़ की हर शाखा पर अलग-अलग रंग के आम लगते है और इनका स्वाद भी अलग-अलग है। मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे माता पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए मिट्टी से शिवलिंग बनाकर घोर तपस्या की थी। जब भगवान शिव ने ध्यान में पार्वती जी को तपस्या करते हए देखा तो महादेव ने माता पार्वती की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी जटा से गंगा जल निकाल कर सब जगह पानी-पानी कर दिया। जल की तेज गति से पूजा में बाधा पड़ने लगी तो माता पार्वती ने उस शिवलिंग जिसकी वह पूजा कर रही थी उसे गले लगा लिया जिससे कि शिवलिंग को कोई नुकसान न हो। भगवान शंकर यह सब देख कर बहुत खुश हए और माता पार्वती को दर्शन दिए। शिव जी ने माता पार्वती से वरदान मांगने को कहा तो माता पार्वती ने विवाह की इच्छा व्यक्त की। महादेव ने माता पार्वती से विवाह कर लिया। आज भी मंदिर के अंदर वह आम का पेड़ हरा भरा है। कांचीपुरम के इस मंदिर, वरदराज पेरुमल मंदिर और कामाक्षी अम्मन मंदिर को सामूहिक रूप से "मूमुर्तिवासम" कहा जाता है, यानि "त्रिमूर्तिवास" तमिल भाषा में "मू" का मतलब "तीन" होता है। इसके बाद हम वरदराज पेरुमल मंदिर गए। 

वरदराज पेरुमल मंदिर

जब हम यहां पहुँचे, तब बाहर भजन और आरती गूंज रही थी। कांचीपुरम के इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा वरदराज पेरुमल, या 'वरदान देने वाले राजा' के रूप में की जाती है। मंदिर के अंदर गर्भगृह के पास छत पर दो छिपकलियों की मूर्तियाँ हैं, एक सोने की और एक चाँदी की। लोगों का मानना है कि इन छिपकलियों को छूने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उनके पिछले पाप धुल जाते हैं। चारों मंदिर में दर्शन करने के बाद बहुत अच्छा लगा। 

रिपोर्टिंग की ज़िम्मेदारी

शाम तक हम वापस गेस्ट हाउस पहुंचे जहां से सामान लेकर हमें तमिलनाडु टूरिज़्म डिपार्टमेंट के होटल आलयम में शिफ्ट किया गया। होटल में शिफ्ट होने के बाद भोजन के लिए हमें वापस श्री चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती विश्व महाविद्यालय लेकर गए, यहां पहले बहुत इंतज़ार करवाया गया फिर खाने के लिए हम गए जिसमें सिर्फ फीकी खिचड़ी मिली। पहले दिन सभी अतिथियों के साथ यह हुआ लेकिन जल्द ही आयोजकों ने अपनी गलती सुधार ली और आगे पूरे समय स्वादिष्ट भोजन की उत्तम व्यवस्था मिली।

खैर, हम वापस होटल आए फिर बातें करने लग गए इतने में कब 2 बज गई पता ही नहीं चला। लोकेंद्र सर तब तक सो चुके थे हम चारों को भूख लग रही थी तो उस रात हम चारों दोस्तों ने मिलकर डोमिनोज़ से पिज़्ज़ा मंगवाया। पिज़्ज़ा आया फिर हमने खाया और उसके बाद हम सो गए फिर सुबह जल्दी फटाफट उठे, तैयार होकर कार्यक्रम स्थल पहुंचे। एक दिन पहले ही तय कर लिया था कि कौन किस सत्र की रिपोर्टिंग करेगा लिहाज़ा मेरे जिम्मे दोनों दिन के डायलॉग सेशन की रिपोर्टिंग आई।

युवा धर्म संसद : संवाद का संगम

12 सितम्बर की सुबह 10 बजे से युवा धर्म संसद, कांचीपुरम का आगाज़ हुआ। पहले दिन आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती, लोकप्रिय कवि कुमार विश्वास, प्रसिद्ध लेखिका अमी गणात्रा जैसी नामी हस्तियां आई। प्रथम संवाद सत्र का विषय था “विकास: उसके प्रत्यक्ष संदर्भ और युग का युवा”। इस पर हमारे कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने इस बात पर जोर दिया कि, “इतिहास ही भविष्य की नींव है।" डॉ. आनंद सिंह ने “विकास और आभासीता” पर प्रकाश डाला, प्रो. संजय शर्मा ने “आत्मशक्ति ही ईश्वर है” पर विचार रखे और श्रीमती सिंधुजा ने भारतीय संस्कृति एवं कांचीपुरम की आध्यात्मिक परंपरा का महत्व बताया। शाम को 6:30 से 8:30 तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ, जिसमें दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत ने मन मोह लिया। रात में शानदार खाना खाया फिर वापस होटल पहुंचे और जल्दी सो गए। 

दूसरा दिन : मूल्य, परंपरा और भविष्य

13 सितम्बर को युवा धर्म संसद का दूसरा और अंतिम दिन था। इस दिन मंच पर पूज्य श्री मिथिलेशनंदिनी शरण जी महाराज, प्रो. सुधा शेषयन, डॉ. हरेंद्र कुमार राय, डॉ. वी. के. हरि - हेमा हरि और मुकेश मिश्रा जैसे विद्वानों ने विचार रखे। उन्होंने वेदों से लेकर आधुनिक समय तक पर्यावरण, पारिवारिक मूल्य, पारस्परिक सद्भाव और राष्ट्रनिर्माण की बातों को जोड़ा।

निष्कर्ष यही था कि बलिदान, धैर्य और एकता से ही परिवार और राष्ट्र सुदृढ़ बनते हैं। ये सब पूर्ण हुआ फिर लंच आज भी बहुत अच्छा था, मुझे दिए गए सत्र की मैंने रिपोर्टिंग की जिसमें पारिवारिक सामाजिक मूल्यों पर गहन विमर्श हुआ। क्लोज़िंग सेरेमनी के बाद हमारे कुलगुरू ने अयोध्या के हनुमंत निवास सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर पूज्य श्री मिथिलेशनंदिनी शरण जी महाराज के हाथों शाल से हमारा सम्मान करवाया।

महाराज जी को भी हमारा काम बहुत पसंद आया। हम भी यह सम्मान पाकर गदगद हो उठे। तीनों दिन अच्छे से रिपोर्टिंग हुई "विकल्प"अख़बार भी बढ़िया निकला। 7 बजे डिनर जल्दी हो गया बहुत अच्छे से भरपेट खाया फिर होटल पहुंचे आराम किया फिर सामान पैक किया और रात 2 बजे तक होटल में ही रुके रहे। खूब बातें की चिप्स खाई फिर कांचीपुरम से चेन्नई जाने के लिए सेवाज्ञ संस्थानम् की तरफ से गाड़ी की व्यवस्था कर दी गई थी। सुबह 4:30 बजे हम चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पहुंचे कुछ देर इंतज़ार किया, और जैसे ही ट्रेन आई हम फिर जो नींद में लीन हुए और 20 घंटे बाद 15 सितम्बर की दरमियानी रात 2 बजे भोपाल कब पहुंच गए पता ही नहीं चला। 

अनुभवों की थाती

कांचीपुरम की इस यात्रा ने मुझे यह सिखाया कि पत्रकारिता केवल कलम चलाने का काम नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और मूल्यों को समझने की भी साधना है। कुलमिलाकर यह समझ आया कि हम युवा यदि अपनी जड़ों से जुड़े रहें, तो हमारा भविष्य कहीं अधिक उज्ज्वल और संतुलित होगा। 

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