इन्दौर की सेन्ट्रल और जिला जेल दोनों में हैं फाँसी घर। इसका नाम सुनते ही मन सिहर हो उठता है। जेल में भ्रमण यात्रा मेरी जारी थी और आदरणीय रतन दादा पाटोदी से मेरी आधा दर्जन मुलाकातों में बहुत सारी सूचनाएं मिली और श्रृंखला बद्ध खबरों ने जन्म लिया। कुछ बातें छप गई थी, कुछ रह गई थी, सबको मिलाकर आपके समक्ष नए कलेवर में मीसाबंदियों की जेल जिन्दगी और स्थिति-परिस्थिति, संघर्ष और नवाचार को रख रहा हूँ।
इस भेंट के समय कोई पुलिस अधिकारी, जेल प्रशासन के अधिकारी, कर्मचारी नहीं थे। रतन दादा पाटोदी और मैं जेल आफिस में ही चर्चारत थे। उन्होंने बताया था कि जिला जेल का फाँसी घर का कंपाउंड, जिससे सब खौफ खाते थे , कैसे सबके लिए भ्रमण के योग्य बन गया। जिला जेल के फाँसी घर पर एक बड़ा सा ताला लटका था। लौहे के जंगले में से देखकर मन सिहर उठता था।
एक कंपाउंड में स्थित फाँसी घर के पास तीन से चार सेल (कोठरी) थी। बड़े-बड़े पेड़, लटकते चमगादड़, और सांय-सांय करता वातावरण।डरावने कंपाउंड में किसी की हिम्मत ही नहीं होती थी। कैदियों की संख्या रोज बढ़ रही थी। इसलिए फाँसी घर के पास की कोठरियों में भी कैदियों को लाया गया।
इन्हीं कोठरियों में सुन्दरलाल पटवा, इंदरमल टुकड़िया मनासा, हिन्दूसिंह परमार, तेजसिंह सेंधव, मोहनलाल सेठिया को यहाँ रखा गया था। रतन दादा ने बताया सभी कोठरियों को साफ-सुथरा किया गया। चूंकि सुन्दरलाल पटवा जनसंघ के प्रदेश अध्यक्ष थे और उनके साथ के सभी नेता बड़े नेताओं में थे, इसलिए जेल के सभी मीसाबंदी उनसे मिलने आने लगे। चहल-पहल बढ़ने से वातावरण में एक अलग ही तरह का आनंद घुलने लगा।
पेड़ों पर डेरा जमाए चमगादड़ भाग निकले, चहल-पहल उनको कहाँ पसंद है। पूरे फाँसी घर का माहौल ही बदल गया। हाँ, फाँसी घर का चबूतरा अपने उसी अंदाज में उपस्थित था और भयावह लगता था। रात को उसकी भयावहता बढ़ ही जाती थी। रतन दादा की सुन्दरलाल पटवा से खूब पटती थी। घंटों किस्से कहानी का दौर चलता रहता था।
दादा ने ही मीसाबंदियों और जेल में बंद खूंखार कैदियों के साथ साफ-सफाई, पेड़ों का रंगरोगन जिससे कि उनकी भयावहता समाप्त की जा सके, यह उन्होंने बड़े जतन से किया। यह किस्सा दादा भी सुनाया करते थे। दादा को संघ के स्वयंसेवक खूब सहयोग करते थे, खासकर श्रमदान में।
दादा भारतीय कुश्ती का महत्व, उसकी खूबियों पर खूब चर्चा करते। देश के बड़े-बड़े पहलवानों की चर्चित कुश्ती और मालवा के योगदान पर भी विस्तार से बताते थे। सुन्दरलाल पटवा अपनी किशोर अवस्था में कुकड़ेश्वर के किस्सों में कुश्ती के किस्से भी सुनाते थे। हिन्दूसिंह परमार देवास में अपने अनुभव और राजनीतिक किस्से भी सुनाते रहे।
जिला जेल का फाँसी घर कंपाउंड, अब सबकी पसंद का परिसर बन गया। फाँसी घर तक सभी मीसाबंदी भ्रमण के लिए आने लगे। डरावने पेड़, लटकते चमगादड़ और सांय-सांय करता चबूतरा अब भयभीत नहीं करता। पेड़ों के डरावने झमघट अब सुकून देने वाले लगने लगे। साफ-सफाई और आक्सीजन देते बड़े-बड़े पेड़ों की छांव अपनी सी लगने लगी थी।
खूंखार अपराधी भी अपराध के किस्सों की बजाए दादा की महफिल के श्रोता बन गए। मुहावरों और कहावतों, मालवी संवादों की दादा की महफिल की तस्दीक सर्वोदय कार्यकर्ता किशोरभाई गुप्ता ने भी की। वे मेरे पिताजी स्वर्गीय आदरणीय पूज्यनीय रामचन्द्र जोशी गुरुजी के झुग्गी झोपड़ी में शिक्षा अभियान के सहयोगी थे। किशोरभाई इसी जिला जेल में बंद थे और दादा की महफिल में सुमधुर गीत और भजन भी गाया करते थे।