लो, पावस ऋतु आ गई...
लो, पावस ऋतु आ गई,
श्याम नभ पर छाई
वो काली बदरी आ गई...
पंख फैलाकर मयुर नाचे
घन-घन बादल गाजें...
कोयल की मधुर आवाज आई
लो, पावस ऋतु आ गई...
रिम-झिम...रिम-झिम...बरसे
प्रिय मिलन को गौरी तरसे...
सजन मिलन को वह आई
रिते सब ताल-तलैया सारे...
सुखे पोखर-कुप हमारे
ऐसी काली घटा छाई...
लो, पावस ऋतु आ गई...
होगी बूँदे बारी जमके
नभ में दामिनि चमके...
घटाएँ...उमड़कर छाई
लो, ‘‘ हेमा ’’ पावस ऋतु आ गई...
हेमलता पालीवाल ‘‘ हेमा ’’
उदयपुर, राजस्थान
पालीवाल वाणी समाचार पत्र ब्यूरो...✍️
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