कोविड-19 के खिलाफ कोवैक्सीन प्राप्त कर चुके लोगों में एंटीबॉडीज 2 महीनों के बाद कम होने लगती हैं. वहीं, कोविशील्ड का डोज लेने वालों में एंटीबॉडी का स्तर 3 महीनों बाद कम होने लगता है. इस बात की जानकारी हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के भुवनेश्वर स्थित रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर की स्टडी में मिली है. देश में 16 जनवरी से शुरू हुए टीकाकरण अभियान में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के इन दो उम्मीदवारों का इस्तेमाल ही सबसे ज्यादा किया जा रहा है.
ICMR-RMRC के वैज्ञानिक डॉक्टर देवदत्त भट्टाचार्य ने बताया कि स्टडी के लिए 614 प्रतिभागियों के नमूने इकट्ठे किए गए थे. इनमें से 308 प्रतिभागी यानि 50.2 फीसदी ने कोविशील्ड प्राप्त की थी. जबकि, 306 यानि 49.8 फीसदी प्रतिभागियों को कोवैक्सीन लगी थी. उन्होंने जानकारी दी कि इस दौरान ब्रेकथ्रू इंफेक्शन (वैक्सीन प्राप्त करने के बाद भी संक्रमण) के कुल 81 मामले सामने आए.
यह भी पढ़े : SBI, PNB समेत कई बैंक दे रहे कमाई का मौका, सिर्फ 14 दिनों के लिए लगाएं पैसा
स्टडी में पता चला कि बाचे हुए 533 स्वास्थ्यकर्मियों में एंटीबॉडीज के स्तर में काफी गिरावट देखी गई. इन कर्मियों में टीकाकरण से पहले कोई संक्रमण नहीं देखा गया था. डॉक्टर भट्टाचार्य ने जानकारी दी है कि वे एंटीबॉडी के बने रहने की जानकारी हासिल करने के लिए करीब 2 साल तक अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने पाया कि कोवैक्सीन प्राप्त करने वालों में एंटीबॉडी का स्तर पूर्ण टीकाकरण के दो महीनों बाद कम होने लगता है. जबकि, कोविशील्ड लेने वालों में यह अवधि 3 महीने है.’
यह स्टडी IgG का पता लगाने के लिए की गई थी. IgG यानि Immunoglobulin G, जिसे सबसे आम एंटीबॉडी कहा जाता है. स्टडी में शामिल प्रतिभागियों के पहला डोज प्राप्त करने के बाद 24 हफ्तों तक टाइट्रे समेत कई जानकारियां रिकॉर्ड की गईं. यह स्टडी मार्च 2021 में शुरू हुई थी. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, डॉक्टर भट्टाचार्य ने कहा कि बूस्टर शॉट की जरूरत होगी या नहीं, इस बात का पता करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण की जरूरत है. उन्हें लगता है कि इस स्टडी की आगे की प्रक्रिया ऐसे सबूत जुटाने में मदद करेगी. उन्होंने बताया कि भारत में इस तरह की यह पहली स्टडी है.