नितिनमोहन शर्मा...✍️
मेरे अस्तित्व की पुष्टि विज्ञान ने भी कर दी है कि में ही वो अकेला स्वर हु जो इस धरा से अंतरिक्ष तक गुंजायमान हूं। उस शून्य में भी मेरा स्वर है...जहा कुछ नही...घनघोर अंधकार है..सब शून्य है।
पुण्य सलिला "नरबदा" मुझसे सटकर हिलोरें मारती है। अप्रतिम सौंदर्य से परिपूर्ण नर्मदा...मानस पुत्री है मेरी वो। तभी तो उसके आँचल का एक एक कंकर... शंकर है। जहाँ मेरा वास है...वो ओंकारेश्वर धाम है। पुण्य सलिला नर्मदा के बीच एक पर्वत पर मेरा डेरा है। ये पर्वत ही मेरी पहचान है। अनादिकाल से अनंतकाल तक। इसकी परिक्रमा का महात्म्य पुराणों तक मे शामिल है। कई मठ मन्दिर आश्रम ओर साधना स्थली आज भी पर्वत पर विद्यमान है। जन सामान्य ही क्या.. परिक्रमा तो निर्मल नीर से भरी नर्मदा ओर कांवेरी भी मेरे इस पर्वत का ही लपेटा लगाती है-चंद्राकर रूप में।
सुंदर-सुरम्य वन क्षेत्र इसी पर्वत पर विराजमान है। असंख्य पेड़ पौधे जीव जंतु मेरी पहचान है। कुछ खास वनस्पतियों का केंद्र हु में। आद्य शंकराचार्य जैसे तपस्वी की तपस्या की स्थली है मेरा आंगन। केरल की कालड़ी के इस बाल संत ने यही बेठकर तो "अद्वेत" को पाया था। त्वदीयं याय पंकजम...नमामि देवी नर्मदे वाला नर्मदाष्टक की रचना के शब्द इसी जगह तो छलके थे।
पर जैसे इन सबको किसी की नजर लग गई। में स्वयम सर्वशक्तिमान मान हूं। पर इस वक्त परबस हूं। अपना ही विध्वंस देखने को मजबूर हूं। मेरे अस्तित्व पर संकट है। एक पर्वत के रूप में मेरी पहचान खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। विकास के नाम पर विनाश का ऐसा व्यूह रचा जा रहा है जिससे मेरे आसपास का पर्यावरण ओर परिवेश सब कुछ नष्ट हो जाएगा।
जिस पर्वत पर संत मुनिजनों ओर भक्तों के कोमल चरण पड़ते थे, उस पर बड़े बड़े डंपर ट्राले ओर ट्रक धड़धड़ाते हुए चल रहे है। मेरी छाती को छलनी किया जा रहा है। असंख्य पेड़ काटकर जमीदोंज कर दिए गए है। अमूल्य जड़ीबूटियों के पौधे धूलधूसरित कर दिये जा रहे है। गहरा खनन किया जा रहा है। बड़े विस्फोटों से मेरी आत्मा को बेमौत मारा जा रहा है। ड्रिल मशीनों से गहराई तक जख्म दिए जा रहे है। अगर ऐसा ही रहा तो मेरा अस्तित्व ही...नर्मदा किनारे संकट में आ जायेगा। वैसे ही मेरी छाती पर बांध बांधकर नर्मदा के प्राकृतिक प्रवाह को रोक दिया। अब एक प्रतिमा के नाम ये सब कुछ...?? जो मेरे अस्तित्व को ही खत्म कर देगा।
ओंकार की ये कारुणिक पुकार भी आपके लिए है पंतप्रधान मोदी जी। कोशिश पूरी की थी कि ओंकार पर्वत का ये आर्तनाद आपके कान तक पहुंचे। आप इस ज्योतिर्लिंग नगरी से लगी दूसरी ज्योतिर्लिंग नगरी में थे तो उम्मीद की कि आप तक मेरी कारुणिक पुकार पहुंच जाएगी। उम्मीद आपसे ही है। आप शिव भक्त है। उम्मीद से हु की दिल्ली तक मेरी पुकार पहुंच जाएगी।
पंतप्रधान जी ये सब एक प्रतिमा के लिए किया जा रहा है। प्रतिमा भी उन आद्य शंकराचार्य जी की जिन्हें मेरा ये पर्वत ओर ज्योतिर्लिंग नगरी ओंकारेश्वर प्राणों से प्रिय थी। प्रदेश की सत्ता शंकराचार्य की विशाल प्रतिमा स्थापित कर आद्य गुरु की याद को चिरस्थायी करने जा रही है। अच्छा कार्य है लेकिन इसके लिए क्या ओंकार पर्वत ही अनुकूल जगह है? जो कि नर्मदा नदी, ज्योतिर्लिंग ओर पर्यावरण की दृष्टि से बेहद अहम है। क्या ये प्रतिमा ओंकारेश्वर में ही किसी अन्य स्थान पर नही स्थापित की जा सकती?
मोदी जी प्रतिमा स्थापना के इस कार्य का ओंकारेश्वर में ही नही, पूरे निमाड़ में विरोध है। साधु संत समाज के साथ साथ पर्यावरण से जुड़ी संस्थाए ओर सामजिक संगठन भी आंदोलनरत है। अब इसमें राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ भी शामिल हो गया है। ओंकार पर्वत की चिंता करने वाले इस मसले को कोर्ट तक लेकर गए है। लेकिन इस सबके बीच भी ओंकार पर्वत को छलनी करने का काम जारी हे। पेड़ काटे जा रहे है। विस्फोट से धमाके हो रहे है। भारी वाहन आ जा रहे है।
प्रतिमा की वाहवाही से पहले मेरे तक आने के रास्ते तो दुरुस्त कीजिये। उज्जयनी में तो सीधे रेलवे स्टेशन से भक्तों को रोपवे के जरिये मन्दिर तक लाने की बात हो रही है। लेकिन ओंकारेश्वर आना जाना कब आसान होगा...कोई सुध लेने वाला नही। हर वार त्योहार ओंकारेश्वर जाने के रास्ते पर ऐसा जाम लगता है कि लोगो ने ओंकारेश्वर आना जाना ही छोड़ दिया। खेड़ी घाट पर ही डुबकी लगाकर लोग लौट रहे है।
उज्जैन से रेलवे स्टेशन से रोपवे ओर यहां स्टेशन से भी 2 किमी दूर हर बार श्रद्धालुओं को उतार दिया जाता है। ज्योतिर्लिंग तक पहुंचते पहुंचते श्रद्धालुओं की साँसे फूल जाती हैं। बीमार दुखियों ओर वृद्धजनों की परेशानियों की तो बात ही अलग है।स्वयम के वाहनों से जाने वालों के साथ अवैध वसूली बदस्तूर जारी है।
पंत प्रधान जी। आपके मालवा आगमन का लाभ निमाड़ स्थित ज्योतिर्लिंग नगरी ओंकारेश्वर को भी मिल जाये। आप इस नगरी के लिए भी कोई मास्टर प्लान या विकास का मेगा प्लान घोषित करने की ताकीद राज्य को दे देवे। जैसा काशीपति को सम्मान मिला, जैसा अवंतिकापुरी का कायाकल्प हुआ...क्या ऐसा प्राचीन मांधाता राजा की नगरी ओंकारेश्वर के लिए नही हो सकता? क्या निमाड़ की तरह...ओंकार भी उपेक्षित ही रहेगा??