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indoremeripehchan : नाकारा प्रशासन , अंधी न्यायपालिका और चालानखोर पुलिस : इंदौर का हादसा हत्या से कम नहीं

इंदौर Published by: indoremeripehchan.in Updated Tue, 16 Sep 2025 12:47 AM
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इंदौर के इतिहास में सबसे बड़ा एक्सिडेंट नहीं नरसंहार हे पूरे थाने को कैलाश जी सस्पेंड करे...!

इंदौर.

इंदौर एयरपोर्ट रोड पर हुआ भीषण हादसा किसी सड़क दुर्घटना से कम नहीं बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और न्यायपालिका की उदासीनता से जन्मी सामूहिक हत्या है। अंकित होटल से गीतांजलि अस्पताल के बीच बेकाबू ट्रक ने निर्दोष लोगों को रौंद डाला। दर्जन भर मौतों की आशंका है, कई लोग अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर इस क़त्लेआम का जिम्मेदार कौन है?

पुलिस प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों को भूल चुका है। उनका पूरा अमला केवल चालान बनाने और जनता पर हेलमेट का बोझ डालने में उलझा है। नशेड़ी और गैर-जिम्मेदार ड्राइवरों पर नियंत्रण, भारी वाहनों की निगरानी, ट्रैफिक प्रबंधन और सड़कों पर सुरक्षा इंतज़ाम जैसी बुनियादी बातें उनके एजेंडे में हैं ही नहीं। सड़क सुरक्षा की जगह चालानखोरी ही इनकी पहचान बन चुकी है। आखिर यह प्रशासन कब जागेगा? क्या आम नागरिक की जान की कोई कीमत ही नहीं?

न्यायपालिका भी उतनी ही दोषी है। सड़क सुरक्षा को लेकर बार-बार हाई कोर्ट में याचिकाएँ दाखिल होती रहीं, लेकिन वे सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गईं। अदालतों ने जनता के सिर पर हेलमेट का बोझ डालना तो आसान समझा, मगर सड़कों पर मौत रोकने के लिए ठोस व्यवस्था लागू करने की हिम्मत कभी नहीं दिखाई। मिलॉर्ड, आखिर जनता कब तक आपकी खोखली कार्यवाही की कीमत अपनी जान देकर चुकाएगी?

जख्म का हिसाब अब जनता लेगी और अगर सिस्टम नहीं जागा तो यह आक्रोश ऐसा तूफ़ान बनेगा जो प्रशासन और न्यायपालिका की नींव हिला देगा।

इस हादसे के बाद जनता का गुस्सा सड़क पर फूट पड़ा। ट्रक को रोककर लोगों ने उसमें आग लगा दी। यह आग सिर्फ उस शराबी ड्राइवर के खिलाफ नहीं थी, बल्कि पूरे सिस्टम के खिलाफ थी जिसने उसे खुलेआम सड़क पर उतरने दिया। यह आक्रोश पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका की मिली-जुली नाकामी के खिलाफ था।

इस एक हादसे ने कई घरों के चिराग बुझा दिए। कर-लोडिंग रिक्शा और बैटरी रिक्शा में बैठे निर्दोष लोग अपने परिवार के साथ घर लौट रहे थे, लेकिन नशे में धुत्त एक ड्राइवर और प्रशासन की लापरवाही ने उनकी जिंदगी छीन ली। यह सड़क हादसा नहीं, यह साफ-साफ हत्या है। इस हत्या का अपराधी सिर्फ ड्राइवर नहीं बल्कि पूरा नाकारा सिस्टम है।

इंदौर की सड़कों पर अब हर दिन मौत का खेल खेला जा रहा है और जिम्मेदार लोग सिर्फ बयानबाज़ी कर अपनी कुर्सियाँ बचाने में व्यस्त हैं। जनता पूछ रही है—क्या हमारी जान सिर्फ हेलमेट पहनकर सुरक्षित हो जाएगी? क्या अदालत और पुलिस सिर्फ औपचारिकताएँ निभाने के लिए ही बची हैं? इंदौर की आत्मा पर लगे इस जख्म का हिसाब अब जनता लेगी और अगर सिस्टम नहीं जागा तो यह आक्रोश ऐसा तूफ़ान बनेगा जो प्रशासन और न्यायपालिका की नींव हिला देगा।

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