● वातारि गूगल : गूगल शुद्ध, गन्धक शुद्ध, हड़, बहेड़ा, आँवलाका चूर्ण सब बराबर वजनमें लेकर कैस्टर आइल (अरण्डीका तेल) में छः-छः माशेकी गोली बनावें। सोते समय एक गोली दूधके साथ लें। यह रेचक भी है। वायुके दर्द दूर करता है। (अनुभूत)
● वातव्याधिके लिये अरण्डीपाक : यह रेचक है, शीतकालमें अधिक लाभदायक है। त्रिकुटा डेढ़ तोला, लौंग तीन माशे, बड़ी इलायचीके दाने छः माशे, दारचीनी छः माशे, पत्रज छः माशे, नागकेसर छः माशे, असगन्ध एक तोला, सौंफ एक तोला, सनाय एक तोला, पीपलामूल छः माशे, मालेके बीज (निर्गुण्डी) छः माशे, सतावर छः माशे, बिसखपरा (पुनर्नवा सफेद) की जड़का बक्कल छः माशे, खस छः माशे, जायफल चार माशे, जावित्री चार माशे - इन सबका चूर्ण करें। दस तोले अरण्डीके बीजकी गिरी बारीक पीसकर एक सेर गायके दूधमें मावा बनावें। उसको दो छटाँक गायके घीमें भुनें। फिर दवाओंका चूर्ण और एक सेर बूरा मिलाकर छः-छः तोलाके लड्डू बनावें। खुराक - एक लड्डू गायके दूधके साथ अथवा बिना दूधके प्रातःकाल एवं सायंकाल खाय। यह रेचक भी है। (अनुभूत)
● गठिया और प्रत्येक वातविकारके लिये : एक छटाँक अरण्डीके बीज रेतमें या भाड़में भुनाकर चबायें और उसके ऊपर आधसेर या जितना पिया जा सके गायका दूध पिलावें। इससे दस्त आयेंगे। सात दिनतक ऐसा करें। खुराक - दाल मूँग और चावलकी पतली खिचड़ी। हवासे बचाये रक्खें।
● वातविकारके लिये असगन्ध, चोबचीनी, आँवला समभाग चूर्ण 6 माशे सोते समय दूध या पानीके साथ।
● वातके रोगकी अत्यन्त पीड़ामें चरस (सुल्फा) आधी रत्ती खिलाकर गायका दूध गायके घीके साथ पिलावें। (अनुभूत)
वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बना है। वात या वायु दोष को तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारे शरीर में गति से जुड़ी कोई भी प्रक्रिया वात के कारण ही संभव है। चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक और उत्साह का केंद्र माना गया है। वात का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।
वात में योगवाहिता या जोड़ने का एक ख़ास गुण होता है। इसका मतलब है कि यह अन्य दोषों के साथ मिलकर उनके गुणों को भी धारण कर लेता है। जैसे कि जब यह पित्त दोष के साथ मिलता है तो इसमें दाह, गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और जब कफ के साथ मिलता है तो इसमें शीतलता और गीलेपन जैसे गुण आ जाते हैं।