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सड़कों पर निर्वस्त्र नहाती महिलाओं का बुरखों तक पहुंचने का सफ़र

आपकी कलम Published by: paliwalwani Updated Sun, 02 Feb 2025 11:38 PM
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सुरेन्द्र चतुर्वेदी

सड़क के किनारे बने हैड पम्पों, कुओं और तालाबों में नग्न स्नान करने वाली बेघर महिलाएं धीरे धीरे मुस्लिम बस्तितियों में पहुंचीं फिर घरों में और फिर अपने ख़ुद के मकानों में। अंत में यह भी हुआ कि इन महिलाओं ने बुरखा धारण कर लिया। कैसे तय हुआ यह सफ़र आइए! जाने पूर्व वन विभाग के एक अधिकारी जनाब रब नवाज़ से।

रब नवाज़ तारागढ़ अजमेर मे रहते हैं और वन संरक्षण के लिये सरकार द्वारा सम्मानित भी किए जा चुके हैं। कल जब मैंने अजमेर में बांग्लादेशियों की भरमार का ज़िक्र किया तो रब नवाज़ ने अपनी प्रतिक्रिया दी। उनकी यही प्रतिक्रिया आपकी सेवा में हाज़िर।

"भाई साहब! सादर नमस्कार ! आप का ब्लॉग एक दम सच्चाई बयान करता हुआ है.एक एक शब्द सच्चाई से भरपूर है. इस सम्बन्ध मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ. इस मामले में कुछ रौशनी डालने की कोशिश कर रहा हूँ.

भाई साहब!  बांग्लादेशियों के मामले में बुद्धिजीवी तो यही चाहते हैँ के इन तमाम बांग्लादेशियों को सही पहचान कर के वापस उनके देश भेज दिया जाना चाहिये. यह बहुत ज़रूरी भी है. इन लोगों ने क़रीब क़रीब पूरे राज्य को ही अपनी गिरफ्त में ले लिया है.

राज्य ही क्यों मैं समझता हूँ के पूरे देश को ही अपनी गिरफ्त में ले रखा है. और यही लोग तरह तरह के अपराधों में शामिल होते हैँ. हां मैं यह नहीं कहता के प्रत्येक बांग्लादेशी अपराधों में शामिल रेहते हैँ लेकिन अधिकतर ऐसे लोग अपराधी ही होते हैँ.इसमें सवाल यह भी उठता है के इतनी बड़ी तादाद में बगलादेशी सीमा कैसे पार कर लेते हैँ.

इसका मतलब यही निकलता है के सीमा पर भी लालची और भृष्ट लोग ज़रूर हैँ. यहाँ मैं यह मानता हूँ के एक आम कर्मचारी अगर भृष्ट होता है तो है तो बहुत गलत लेकिन अगर सीमा पर भी भृष्ट लोग हैँ तो यह बहुत गंभीर बात है यह अपराध कई गुणा बड़ा है..

मुझे अच्छी तरह से याद है के जिस वक़्त इन लोगों का अजमेर में पैर जमाना शुरू हुआ था उस वक़्त मैं आठवीं नवीं कक्षा में पढता था. और मैंने पहली बार हैंड पम्प पर कुछ महिलाओ को नहाते हुए देखा था तो बहुत अजीब सा लगा था और मैंने मेरी माँ को बताया के देखिये यह औरतें किस तरह से नहा रही हैँ इनको ज़रा भी शर्म नहीं आती है. मैं अब स्कूल कैसे जाऊंगा. यह तो रास्ते में ही नहा रही हैँ

मेरे ताजुब की वजह यह थी के उन औरतों ने अपने ब्लाउज़ तो उतार रखे थे और अपने पेटीकोट को अपने सीने पर बाँध रखा था. बस यही वजह थी के मैं ताजुब में पड़ गया था.

फिर यही सीन रोज़ रोज़ देखने को मिलने लगे और धीरे धीरे यह सब कुछ नार्मल सा लगने लगा. क्योंकि यही लोग हमारे पड़ोस के घरों में काम भी करने लग गये और कुछ वक़्त के बाद इन लोगों ने यहाँ के लोगों से मकान भी किराये पर लेना शुरू कर दिया.और फिर धीरे धीरे वक़्त बदलता गया और यह नंगी नहाने वाली औरतें एक दम से इज़्ज़तदार औरतों की तरह ही बुर्क़ा पेहनने लग गईं. जिससे पता ही नहीं चलता था के बुरके में कौन है?

फिर इन औरतों ने बुरके में अपराध करना शुरू कर दिया जिसकी वजह से बुरके वाली औरतों को शक की नज़र से देखा जाने लगा. इसी कारण बहुत सी इज़्ज़तदार औरतों ने बुर्क़ा तर्क करने का फैसला लिया और बुर्के की जगह बड़ी घेरदार चादरें ओढ़ना शरू कर दिया और आज जो हालात हैँ वोह किसी से भी छुपे हुए नहीं हैँ.

( सैयद रब नवाज़ जाफ़री )

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