चौपाल पर परिवर्तन ही हल्की आहट ही है। अशोक गहलोत के खिलाफ गुस्सा नहीं है, जैसा पिछले चुनाव में वसुंधरा के खिलाफ साफ-साफ सुनाई और दिखाई पडता था। इस बार उनको तवज्जो न देने से लोग आश्वस्त दिखे कि चलो भाजपा सत्ता में आई तो वे कम से कम राज नहीं करेंगी। जनता की नजर और दिमाग को पढना पिछले चुनाव की तरह आसान नहीं है। सनातन को लेकर चल रहे बयान पर लोग मुखर हैं।
अशोक गहलोत की योजनाओ से खुशी भी खुलकर इजहार करते हैं। इजरायल पर हमास के आतंकी हमले ने भाजपा की संभावना को पर लगा दिए हैं। सीकर, बीकानेर, किशनगढ, जयपुर में लोग परिवर्तन के पक्ष में प्रतिक्रिया करते दिखे। महिलाएं खुलकर विचार रखती हैं तो पुरुष कन्नी काट जाते हैं। युवाओ में नया होने और करने की लालसा है तो मुस्लिम वोट खुलकर अशोक गहलोत के साथ है। सबसे ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ गुर्जर समाज नाराजी व्यक्त कर रहा है। एक सम्प्रदाय विशेष के मृतक के परिजन को मुआवजा, रोजगार और व्यवसाय देने को लेकर हिन्दू धर्म का हर समाज मुखर होकर बोल रहा है, व्यापारी भी इसे गलत मानते हैं। अशोक गहलोत की तुष्टिकरण की इस प्रवृत्ति को चुनावी लाभ के रूप में देखा जा रहा है।
इससे ध्रुवीकरण होगा और कोई रोक भी नहीं सकता। भाजपा और संघ परिवार टीवी की बहस, आम सभा से लेकर प्रचार अभियान तक में हथियार के रूप में इस्तेमाल करेगा और कर रहा है। चुनाव की रंगत दिखने लगी है, उसकी धार अभी पैनी नहीं है, पर नामांकन के बाद पूरे शवाब पर आ जाएगी चुनावी रंगत और कर्कशता। वहीं भाजपा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता तथा मौजूदा कांग्रेस सरकार के खिलाफ ‘सत्ता विरोधी’ लहर के सहारे जीत का भरोसा है। राज्य में 25 नवंबर 2023 को मतदान होगा जबकि तीन दिसंबर को मतगणना होगी।
भाजपा के पास बूथ स्तर तक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है। पार्टी ने चुनाव की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी थी।इसके साथ ही पार्टी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा मिलने की उम्मीद है। मोदी राज्य में पहले ही कई रैलियों को संबोधित कर चुके हैं।इसके अलावा भाजपा की ‘हिदुत्व अपील’ से भी उसे वोट मिलने की उम्मीद है। पार्टी राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को उठाती और अशोक गहलोत सरकार को “तुष्टीकरण” पर घेरती भी नजर आ रही है।
भाजपा की राजस्थान इकाई की खींचतान भले ही कांग्रेस की तरह खुली न हो लेकिन पार्टी आलाकमान को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके खेमे से सावधानी से निपटना होगा। इसके अलावा भाजपा पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के मुद्दे का ढंग से बचाव नहीं कर पाई है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र ईआरसीपी को “राष्ट्रीय परियोजना” का दर्जा देने के अपने आश्वासन से पीछे हट गया।
राज्य में 1990 के दशक से ‘सत्ता विरोधी लहर’ एक अहम चुनावी कारक रही है और इस बार यह भाजपा के पक्ष में एक बड़ा कारक है। पांच साल के कांग्रेस शासन के बाद, मतदाताओं का झुकाव इस बार भाजपा को सत्ता में लाने की तरफ हो सकता है। भाजपा प्रतिद्वंद्वी पार्टी की अंदरूनी कलह का फायदा उठाएगी। कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट ने इस साल परीक्षा पेपर लीक जैसे मामलों को लेकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था। इसके अलावा भाजपा कानून-व्यवस्था, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर गहलोत सरकार को घेरने की कोशिश करेगी। कथित ‘लाल डायरी’ भी चर्चा का मुद्दा बनी हुई है।
पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली और गहलोत सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू किए जाने से कांग्रेस की तरफ मतदाता जा सकते हैं। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल अनेक विधानसभा सीटों पर उन जाट वोट में सेंध लगा सकते हैं जो भाजपा के पक्ष में जा सकते थे। सीमावर्ती इलाकों में नई भारतीय आदिवासी पार्टी पर भी नजर रखनी होगी।