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गीता भवन में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना रुक्मणी मंगल उत्सव : आज समापन

इंदौर Published by: sunil paliwal-Anil paliwal Updated Tue, 12 Jul 2022 01:08 AM
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रूक्मणी विवाह भारतीय संस्कृति और मर्यादा का गौरवशाली उजला पक्ष : प्रणवानंद जी

इंदौर : भगवान की लीलाओं के श्रवण एवं दर्शन से मन के विकार दूर होते हैं और शरीर की इंद्रियों पर सात्विक प्रभाव होता है। कृष्ण-रुक्णमी विवाह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। इसे रुक्मणी मंगल भी कहा गया है, क्योंकि यह प्रसंग भारतीय संस्कृति और मर्यादा का गौरवशाली उजला पक्ष है। कृष्ण योगेश्वर, लीलाधर और नटवर की यही खूबी है कि वे कृपा वर्षा करते भी हैं तो पता ही नहीं चलने देते।

ये दिव्य विचार हैं अखंड प्रणव एवं योग वेदांत न्यास के प्रमुख महामंडलेश्वर स्वामीश्री प्रणवानंद सरस्वती के, जो उन्होंने आज शाम गीता भवन सत्संग सभागृह में गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में कृष्ण-रूक्मणी विवाह प्रसंग की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कथा में विवाह का जीवंत उत्सव धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही कृष्ण-रूक्मणी ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई, कथा स्थल भगवान के जयघोष से गूंज उठा। वर और वधू पक्ष ने एक-दूसरे का स्वागत किया। बाराती और घराती के बीच स्वागत-सत्कार की रस्म भी निभाई गई।

कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी सुरेश शाहरा, गोपालदास मित्तल, राम ऐरन, रामविलास राठी, मनोहर बाहेती, प्रेमचंद गोयल, दिनेश कुमार तिवारी, राजेन्द्र माहेश्वरी, सविता रंजन चक्रवर्ती, मनोज कुमार गुप्ता, सीए महेश गुप्ता आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा का समापन मंगलवार 12 जुलाई को दोपहर 3 से सायं 7 बजे कृष्ण-सुदामा मिलन, नव योगेश्वर संवाद एवं भागवत पूजन के साथ होगा। गुरू पूर्णिमा का मुख्य महोत्सव बुधवार 13 जुलाई को सुबह 10 बजे से गीता भवन सत्संग सभागृह में प्रारंभ होगा।

महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने कहा कि हमारे धर्मग्रंथ सुशुप्त समाज को जागृत एवं चैतन्य बनाते हैं। मनुष्य जन्म हमें केवल पशुओ की तरह व्यवहार करने के लिए नहीं, बल्कि प्राणी मात्र के प्रति सदभाव, परमार्थ और सेवा करुणा जैसे प्रकल्पों के लिए भी मिला है। भगवान अनुभूति का विषय है। हृदय में पवित्र संकल्प आएंगे तो विचारों का प्रवाह भी निर्मल हो जाएगा। भारत भूमि पर जितने भी देवी-देवताओँ ने अवतार लिया है, हम सबके उद्धार के लिए ही लिया है।

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